हिंदू धर्म में पुरुष जनेऊ क्यों पहनते हैं?

यज्ञोपवित या जनेऊ पहनना हिंदू धर्म के जो 16 संस्कार हैं उसमें से जनेऊ को धारण करना एक संस्कार है।

वर्तमान में जनेऊ का चलन कम हो गया है परंतु जनेऊ हमारे कर्मकांड का एक भाग है जिसमें बिना काम के बंधनों में बाँधना माना जाता है।

वैदिक काल में जनेऊ धारण करने के बाद ही बालक को यज्ञ तथा स्वाध्याय करने का अधिकार प्राप्त होता था।

हमारे शरीर के पृष्ठ भाग में पीठ पर एक प्राकृतिक रेखा है जो विद्युत् प्रवाह की तरह काम करती है।

हमारे शरीर की यह प्राकृतिक रेखा दाएँ कंधे से लेकर कटिप्रदेश तक स्थित होती है तथा यह अत्यंत सूक्ष्म नस होती है।

अगर हमारी इस प्राकृतिक रेखा पर संक्रमण होता है तो हमें काफी परेशानियों का सामना करना पढ़ सकता है जिसे हर्पस कहते हैं।

यदि शरीर की यह प्राकृतिक नस सही अवस्था में हो तो मनुष्य काम, क्रोध आदि विचारों व विकारों से हमेशा दूर रहता है।

हिंदू धर्म के कई पुरुष जनेऊ धारण करते हैं क्योंकि जनेऊ शरीर की इस नस को हमेशा ऊर्जा से भरा रखता है।

जनेऊ धारण करने से जनेऊ मनुष्य को गलत कर्मों से परावृत रहने की याद दिलाता है। 

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