कान्हा जी का नाम लड्डू-गोपाल कैसे पड़ा?

Deepak Kumar Saini -  Vastu & Geopathy Coach & Expert

दोस्तों आज हम आपको बताएँगे कि कान्हा जी को लड्डू गोपाल के नाम से क्यों जाना जाता है?

लड्डू गोपाल

भगवान श्री कृष्ण जी का एक कुम्भनदास नामक परम भक्त था तथा कुम्भनदास के पुत्र का नाम रघुनंदन था।

परम भक्त

भगवान श्री कृष्ण जी के परम भक्त कुम्भनदास के पास वृन्दावन से भागवत कथा करने के लिए एक न्योता आया था।

भागवत कथा

कुम्भनदास जी ने सोचा कि भगवान की सेवा की तैयारियाँ कर देता हूँ और रोज की तरह कथा करके वापस लौट आऊँगा जिससे भगवान की सेवा का नियम भी नहीं टूटेगा।

भगवान की सेवा

कथा करने से पहले कुम्भनदास जी ने अपने पुत्र रघुनंदन को समझा दिया कि भगवान जी का भोग तैयार है बस समय पर तुम भगवान को भोग लगा देना।

भगवान का भोग

भोग लगाने का समय आया तो रघुनंदन ने ठाकुर जी के सामने भोग की थाली रखी और बहुत ही सरल मन से आग्रह किया कि ठाकुर जी आओ और भोग पाओ।

भोग लगाने का समय

रघुनंदन अभी बालक था और उसके मन में यही था कि ठाकुर जी स्वयं आएँगे और अपने हाथों से भोजन करेंगे किंतु रघुनंदन के बार-बार आग्रह करने पर भी भोग की थाली ऐसी ही रही।

रघुनंदन

रघुनंदन अब उदास हो चूका था तो फिर ठाकुर जी ने स्वयं एक बाल रूप धारण किया और भोग पाया और यह दृश्य देखकर रघुनंदन बहुत ही प्रसन्न हुआ।

बाल रूप

अब कुम्भनदास जी कथा करके वापस आए तो उन्होंने अपने पुत्र से प्रसाद माँगा तो रघुनंदन ने कहा कि भोग तो सब ठाकुर जी खा लिए परंतु कुम्भनदास को लगा रघुनंदन झूठ बोल रहा था।

प्रसाद

अगली सुबह कुम्भनदास ने एक लड्डू बनाया और रघुनंदन को कहा कि आज भी तुम ठाकुर जी को समय पर भोग लगा देना ऐसा कह कर कुम्भनदास छुप गए और सब देखने लगे।

एक लड्डू

रघुनंदन ने ठीक वैसा ही किया उसने ठाकुर जी के सामने लड्डू रखा और ठाकुर जी को पुकारा और ठाकुर जी बाल रूप में प्रकट हो कर लड्डू खाने आ गए।

ठाकुर जी

इसी कथा के आधार पर जिस दिन से ठाकुर जी बाल रूप में लड्डू खाने आए थे उसी दिन से ठाकुर जी का नाम लड्डू गोपाल पड़ा और उनकी इस स्वरुप में सेवा की जाने लगी।

भगवान श्री कृष्ण जी

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